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आवारा बादल

3 . प्यारा बचपन 

खाना खाते खाते ही रवि मृदुला को विनोद की बचपन बातें बताने लगा 
"जानती हो मृदुला , विनोद बचपन में बहुत बदमाश, शरारती, झगड़ालू और नंबरी हुआ करता था । इसीलिए तो इसका नाम मैंने "नंबरी" रख दिया था स्कूल में । इसकी और मेरी दोस्ती कैसे हुई पता है" ? 
"मुझे कैसे पता होगा बाबा ? मैं कोई आपके स्कूल में थोड़े ही पढ़ी थी जो आप दोनों की शैतानियों को देखती रहती थी । आप बताओगे तब तो पता चलेगा ना" । मृदुला के स्वर में उलाहना था, कटाक्ष था लेकिन अधरों पर मुस्कान खेल रही थी । 

"यह भी सही है । तो फिर सुनो । नंबरी का स्कूल में एडमिशन मेरे बाद हुआ था । जैसा कि आमतौर पर होता है शुरू शुरू में बच्चे बहुत रोते हैं स्कूल जाते समय । विनोद भी बहुत रोता था । बहुत नाटक करता था स्कूल जाने में । शुरू में तो इसको इसकी मां या इसके पिताजी स्कूल छोड़ने आते थे । मगर आगे शायद वो अपने काम धंधे में व्यस्त रहे होंगे इसलिए नहीं आते थे । वैसे भी कब तक आते वे ? थोड़े दिनों बाद तो बच्चों को खुद ही आना होता था स्कूल । विनोद जब एक दो दिन स्कूल नहीं आया तो तीसरे दिन हमारे  गुरुजी ने हमें आदेश दे दिया कि जाओ और विनोद को यहां लेकर आओ । अपने साथ चार लड़के भी लेकर जाओ । और हां , खाली हाथ मत आना" ।
मृदुला आश्चर्य चकित होकर उन दोनों के बचपन की कारस्तानियां सुन रही थी । वैसे तो उसकी आंखें बड़ी बड़ी ही थीं मगर कौतूहल से वे और भी बड़ी हो गयीं थी । झील सी गहरी नजर आने लगी थीं उसकी आंखें । उनमें प्रेम का अथाह जल भरा हुआ था ।

रवि आगे कहने लगा " गुरुजी का आदेश मिलने के बाद हम सब लोग विनोद के घर की ओर दौड़ पड़े थे । जैसे कि कोई शिकारी अपने शिकार पर टूट पड़ता है । उन दिनों गुरुजी का आदेश भगवान के आदेश से भी बढ़कर होता था । टांगाटोली करके लाने में जो मजा था वह किसी और चीज में कहाँ था ? टांगाटोली मतलब चार लड़के चारों हाथ पांवों को पकड़कर जब किसी लड़के को हवा में उछालते हुये लेकर आते थे तो उसे टांगाटोली कहते हैं । टांगाटोली के समय वह लड़का बुरी तरह चीखता रहता था । हाथ पांव चलाने की कोशिश करता रहता था । मगर उसके प्रयासों पर पानी फेरते हुए उसे झूला झुलाते हुये स्कूल तक लेकर आते थे । बड़ा मजा आता था इसमें । गुरुजी ने कह रखा था कि इसे हर हाल में लाना है । कोई बहाना नहीं चलना चाहिए इसका । राजी राजी या गैर राजी, जैसे भी आये । और अगर इसे हम लोग साथ नहीं लाते तो फिर हम लोगों की खैर नहीं होती थी । तब हमारी धुनाई होने की संभावना बन सकती थी । इसलिए यह भी आदेश का एक हिस्सा था । मरता क्या ना करता वाली बात हो गई थी हमारी । इस धमकी से हम लोग डर गये थे इसलिए आदेश का अक्षरशः पालन करना हमारा धर्म हो गया था । 

जब हम लोग इसके घर पहुंचे तब यह हमको देखकर घर से नौ दो ग्यारह हो गया था । हमें महसूस होने लगा कि आज तो "काणा मास्टर" शीशम की लौद से मार मार कर हमारी खाल उधेड़ देगा । इसलिए इसे हर हाल में पकड़ कर ले जाना ही होगा । मैंने आव देखा ना ताव , सीधे इसके पीछे दौड़ लगा दी और वह भी फुल स्पीड में । बकरे की मां आखिर कब तक खैर मनाती ? आखिर में आ ही गया बच्चू पकड़ में । और जब पकड़ में आ गया तो दे लात, दे घूंसा , दे थप्पड़, दे चप्पल । मार मारकर अधमरा कर दिया था इसको मैंने । फिर हम चारों जांबाजों ने इसके हाथ पैर पकड़े और इसकी बीच बाजार से बारात निकालते हुये  टांगाटोली करते हुए इसे स्कूल ले आये । स्कूल तक आते आते हम चारों बच्चों का कचूमर निकल गया था । बहुत भारी था यह" । विनोद की तरफ देखकर रवि मुस्कुरा दिया । 

"उस दिन के बाद से इसने फिर कभी मुझसे पंगा लेने की हिम्मत नहीं दिखाई । मेरा कसरती बदन देखकर इसकी सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती थी । इसके घरवालों के सामने ही उस दिन मैंने इसकी अच्छी खासी धुनाई कर दी थी । इतनी मार खाने के बाद कौन ऐसा पागल इंसान है जो ऐसा दुस्साहस फिर से करेगा " ? रवि विनोद के मजे लेने लगा । 
"बस, उसी दिन से हमारी दोस्ती हो गई । और दोस्ती भी ऐसी हुई कि पूरे स्कूल में हमारी दोस्ती के चर्चे होने लगे" । इस बार विनोद ने दबी हुई जुबान से अपनी बात कही । अब उसे भी पुरानी बातों को बताने में मजा आने लगा था । उसने कहा "ये भी कमाल के थे भाभी , बचपन में । मालूम है इन्होंने क्या किया" ? विनोद ने प्रश्नवाचक निगाहों से मृदुला को देखा ।

"अरे बाबा, मुझे कैसे मालूम होगा ? मैं कोई अंतर्यामी तो हूँ नहीं जो हर एक के स्कूल की बात जान लूं ? अब आप भी सुना दीजिए इनकी कारस्तानियां । हमें भी तो पता चले कि जनाब ने क्या क्या गुल खिलाये थे बचपन में" ? मृदुला ने हंसकर कहा । वह भी अब उनके बीच में सहज हो रही थी । 

"आप सही कह रही हैं भाभी । आपको कैसे पता होगा ? कोई बतायेगा तभी तो पता चलेगा आपको । ये तो अपनी कारस्तानी खुद से बताने से तो रहे । और कोई बताने वाला है नहीं यहां पर। फिर कैसे ज्ञात होता ? इनकी कारस्तानियों का कच्चा चिट्ठा खोलता हूँ मैं अभी" । कहकर विनोद हंसने लगा ।

"ओए साले, देख ले तू । फिर तेरा भी कच्चा चिट्ठा खुल जायेगा , हां । सोच समझ कर बोलना प्यारे यहां पर " । रवि ने विनोद को धमकाने की कोशिश की मगर अब विनोद कहाँ रुकने वाला था ? कहने लगा 
" जब हम कक्षा तीन में पढ़ते थे तब रवि कक्षा का मॉनीटर हुआ करता था । हमारे स्कूल में एक मास्टर था खिलाड़ी मीणा । बहुत क्रूर था । बिना बात ही मारता था वह । बिना लात घूंसों के तो बात ही नहीं करता था वह । और तो और लड़कियों तक की पिटाई बुरी तरह से करता था साला । बड़ा निर्दयी और बेरहम था वह । हम सबने उसका नाम "जल्लाद" रख दिया था । 

वह हमको गणित पढ़ाता था । एक दिन उसने गणित का एक सवाल दिया था कक्षा में हल करने के लिए । कक्षा के सब बच्चों ने वह सवाल हल कर लिया लेकिन इनसे हल नहीं हो पाया था वह सवाल । मैंने भी इन्हें समझाने की बहुत कोशिश की मगर पता नहीं इनकी अकल उस दिन न जाने कहाँ चली गई थी, कुछ समझ ही नहीं आया था इन्हें  । तब उस जल्लाद की निगाहें इन पर पड़ी और बोला " तू स्लेट लेकर क्या कर रहा है वहां पर ? अभी तक किया नहीं है क्या वह सवाल " ? 

ये भला क्या कहते । नीची गर्दन किये चुपचाप बैठे रहे । इस बात से वह जल्लाद और चिढ़ गया और उसने इनके हाथ से स्लेट लेकर उस स्लेट से ही इनकी पीठ में मारना शुरू कर दिया । पत्थर की स्लेट होती थी तब जिसके चारों ओर लकड़ी का फ्रेम बना होता था । उसने मारा भी कोने से था ।  खून निकल आये थे इनकी पीठ में । ये तो वहीं जमीन पर गिर पड़े और पड़े पड़े ही जोर जोर से डकराने लगे थे । जल्लाद ने अपना पूरा गुस्सा इन पर उतार दिया था । वह कुछ और पिटाई करता , इतने में स्कूल की छुट्टी हो गई । ये लगातार रोये जा रहे थे । हम तीन चार लड़कों ने इन्हें चुप कराने की बहुत कोशिश की मगर ये चुप होने का नाम ही नहीं ले रहे थे । फिर हम तीन चार लड़के इनको साथ लेकर इनके घर आ गये । ये तब तक लगातार रोये जा रहे थे और आंसुओं से अपनी यूनिफॉर्म भिगोये जा रहे थे । 

उस समय इनके पिताजी घर पर ही थे । पंचायत से घर आये थे खाना खाने के लिए।  हमने सारा वृत्तांत उन्हें संक्षेप में कह सुनाया । पूरा घटनाक्रम सुनकर इनके पिताजी के तन बदन में आग लग गई । आखिर गांव के सरपंच जो थे । ऐसे कैसे मार सकता था कोई उनके लाल को ? लाल पीले होते हुये वे इनको लेकर स्कूल पहुंचे । स्कूल में तब सब मास्टर वॉलीबॉल खेल रहे थे । इनके पिताजी ने उस अध्यापक जल्लाद को खूब गालियां सुनाई । मां बहन सब एक कर दी थी उसकी । सब मास्टरों ने उन्हें बहुत समझाया, चुप कराया मगर उस दिन तो उनका पारा सातवें आसमान पर था । खूब गाली गलौज की थी उन्होंने और जमकर भड़ास निकाली थी । जल्लाद ने जब माफी मांगी तब जाकर शांत हुये थे वे " । विनोद ने चुटकी ली । बहती गंगा में उसने भी अपने हाथ धो लिए थे । 

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3 Comments

Chetna swrnkar

30-Jul-2022 10:45 PM

Nice

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fiza Tanvi

15-Jan-2022 11:48 AM

Bahut sunder

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Mahendra Bhatt

02-Jan-2022 11:28 AM

Wah अछि कहानी है पढ़कर मजा आया

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